प्रभु श्री राम का वनवास

अगर यह कहे कि वनवास सिर्फ श्री राम, माता सीता और भईया लक्ष्मण को मिला था तो यह उपयुक्त नहीं होगा। वन में प्रवास भले सिर्फ उनका हुआ हो पर पूरी नगरी सभी माताएं, भईया भरत समेत सभी भाई, मित्र निषाद राज, नगरवासी, पशु, पक्षी के साथ सभी जीव- निर्जीव वस्तुओं को भी वन वास ही मिला था।

अगर यह कहे कि वनवास सिर्फ श्री राम, माता सीता और भईया लक्ष्मण को मिला था तो यह उपयुक्त नहीं होगा। वन में प्रवास भले सिर्फ उनका हुआ हो पर पूरी नगरी सभी माताएं, भईया भरत समेत सभी भाई, मित्र निषाद राज, नगरवासी, पशु, पक्षी के साथ सभी जीव- निर्जीव वस्तुओं को भी वन वास ही मिला था।

अयोध्या पूरे चौदह वर्षों तक अपने श्री राम की प्रतीक्षा में वनवास ही भोग रही थी। आज सोचकर ऐसा लगता है कि कोई राजा ऐसा भी था क्या? जिसके वनगमन से उनकी प्रजा ही दुखित हो गई थी पर पुरुषों में सर्वोत्तम श्री राम के मन मस्तिष्क में तनिक भी विद्रोह भावना आई ही नहीं। श्री राम के पास धनुष और तूणीर के बाण उन्हें कहीं से भी विध्वंशक प्रस्तुत नहीं करते। अपितु उनके मुख मंडल की कोमल मुस्कान यह हमेशा से चरितार्थ करते  आई है कि श्री राम ने अपने अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग हमेशा से जन कल्याण के लिए ही किया है।

लंका पर विजय के पश्चात जब श्री राम, भईया लक्ष्मण और हनुमान जी बैठकर चलने की मंत्रणा कर रहे थे कि अब अयोध्या हम जल्द से जल्द कैसे पहुंचे। श्री राम के मन में अपने भ्राता भरत के प्रति असीम स्नेह उमड़ रहा था। उन्हे यह भी स्मरण था कि भरत ने प्रण लिया है कि यदि श्री राम वनवास अवधि के समाप्ति के उपरांत एक मिनट भी विलंब करेंगे तो भरत अग्निस्नान कर लेंगे। हनुमान जी सब कुछ समझ रहे थे, भक्त भगवान की व्यथा ठीक उसी तरह सुन लेता हैं जैसे भगवान अपने भक्त की।

हनुमान जी श्री राम के मुखमंडल को देखते हुए उन्हें बोले, प्रभु मैं अगर आप चाहेंगे तो मैं अवश्य आपकी इस समस्या का निवारण कर दूंगा। 

श्री राम ने हनुमान जी की तरह स्नेह भरी निगाह से देखा और बोला, "पवन पुत्र मुझे तुम्हारी शक्ति, सामर्थ और भक्ति पर तनिक भी संदेह नहीं है पर। मेरा भरत।

तभी महाराज विभीषण बोल पड़े, "प्रभु क्या हुआ भईया भरत को"

श्री राम ने उन्हें उनके द्वारा लिए गए प्रण का स्मरण कराया, साथ ही यह भी कहा मेरा भरत जब अग्नि स्नान कर लेगा तो मेरे श्री राम होने का आखिर क्या औचित्य है। ऐसा भाई जिसने राजगद्दी पर मेरे खड़ाऊ रख कर पूरे अयोध्या की सेवा किसी राजा की तरह भी की और महल का भोग विलास त्याग कर उसने मेरे तरह ही वनवास भी झेला। मैने सिर्फ वनवास भोगा है उसने वन उपवास का आनंद लिया है।

"वन उपवास क्या होता है प्रभु मेरी समझ पर थोड़ा अपना आशीर्वाद बनाए", विभीषण से हाथ जोड़ते हुए कहा

हनुमान जी समीप खड़े मंद मंद मुस्कुरा रहे थे, वह प्रभु श्री राम की लीला थोड़ा थोड़ा समझ रहे थे। हनुमान जी समझ रहे थे कि अचानक से मिली लंका फिर किसी अहंकारी रावण में तब्दील ना हो जाए इसलिए प्रभु श्री राम भईया भरत की बात के जरिए ही महाराज विभीषण को कुछ समझना चाह रहे हैं।

प्रभु श्री राम बोल पड़े, "वन उपवास स्वेच्छा से लिया हुआ वह निर्णय है जिसे इंसान अपने सहृदयता से स्वीकार करता है। वनवास प्रस्थान की तो मुझे आज्ञा दी गई तो मैंने वन प्रस्थान किया। परंतु कोई राजा सूर्योदय से सूर्यास्त तक राज भवन में राजा के दास की तरह राज धर्म का पालन करे और सूर्यास्त के उपरांत वह एक वनवासी की तरह महलों के भोग विलास से दूर रहे तो इन चौदह वर्षों में वह एक सम्पूर्ण राजा बनकर अवश्य ही निखरेगा। प्रजा की तकलीफें महलों में रहकर नहीं बल्कि उसी राज्य में अभावों में रहकर महसूस की जा सकती है। इसीलिए महाराज विभीषण मैने वन उपवास कहा। उपवास में मन को शुद्धि होती है, उचित विचार, सकारात्मक ऊर्जा और उन्नत समाज की संकल्पना जन्म लेती है। उपवास सदैव स्वेच्छा से होता है, थोपा नहीं जाता है।"

महाराज विभीषण देख रहे थे कि किस प्रकार श्री राम, भईया भरत को खुद से भी श्रेष्ठ बता रहे थे। साथ ही अपनी बाते इतनी तर्कसंगत ढंग से प्रस्तुत करके उन्हे भी नीति का पाठ सीखा रहे थे। 

महाराज विभीषण मुस्कुराए और दो कदम पीछे हटकर श्री राम के चरणों में रोते हुए गिर पड़े और बोले प्रभु भईया भरत की जय हो। श्री राम की जय हो। जय हों रघुनंदन की। जय हो सीता मईया की।

प्रभु ने विभीषण जी के आंसू पूछे और कहे, "यह रोने का समय नहीं उत्सव का समय है मित्र।"

महाराज विभीषण जी ने अपने अनुचरों से कहां, "पुष्पक विमान मंगवाओ, सुंदर फूलों से सजवाओ। और तैयारी करो अयोध्या जी चलने की"

पूरी वानरसेना में सियावर राम चंद्र की जय के नारे से गूंज उठी।

राहुल मिश्रा

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

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2 Comments
Larry
नरेंद्र मिश्र
2024-09-11 at 11:07 PM

बढ़िया लिखा
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Larry
Abhimanyu
2024-02-22 at 04:22 PM

अयोध्या पूरे चौदह वर्षों तक अपने श्री राम की प्रतीक्षा में वनवास ही भोग रही थी। आज सोचकर ऐसा लगता है कि कोई राजा ऐसा भी था क्या?
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