विराट यूंही नहीं विराट है

ऑस्ट्रेलिया को हराना महज़ एक जीत नहीं, बल्कि आत्मा तक सुकून पहुंचाने वाली अनुभूति है। 2003 विश्वकप फाइनल की वो दर्द भरी रात याद आती है, सहवाग का रनआउट होते ही लगा जैसे मैच हाथ से नहीं, बल्कि सपने, उम्मीदें और जज़्बात भी फिसलते जा रहे हों। क्रिकेट के इतिहास में यह उन ज़ख्मों में से एक था, जो वक्त के साथ भरते तो हैं, लेकिन उनकी टीस कभी पूरी तरह जाती नहीं।

ऑस्ट्रेलिया को हराना महज़ एक जीत नहीं, बल्कि आत्मा तक सुकून पहुंचाने वाली अनुभूति है। 2003 विश्वकप फाइनल की वो दर्द भरी रात याद आती है, सहवाग का रनआउट होते ही लगा जैसे मैच हाथ से नहीं, बल्कि सपने, उम्मीदें और जज़्बात भी फिसलते जा रहे हों। क्रिकेट के इतिहास में यह उन ज़ख्मों में से एक था, जो वक्त के साथ भरते तो हैं, लेकिन उनकी टीस कभी पूरी तरह जाती नहीं।

आज का मैच मानो उन्हीं पुराने घावों पर मरहम-पट्टी करने आया हो, उस कड़वी याद को एक खुशनुमा अंत देने के लिए। विराट कोहली का करियर ऐसी ही युगांतकारी पारियों की कहानी है, लेकिन यह पारी कुछ अलग थी, गंभीरता से भरी, संयम से सजी, शीतलता में लिपटी हुई। यह पारी किसी पंकज उदास की ग़ज़ल जैसी थी: धीमी, सधी हुई, लेकिन असर छोड़ने वाली। जैसे कोई थका-मांदा किसान चैत की झुलसाती दोपहरी में खेतों की निराई के बाद बरगद के नीचे बैठकर रोटी-गुड़ खा रहा हो, जैसे सुबह का सूर्योदय धीरे-धीरे आकाश में अपने रंग घोल रहा हो, जैसे पहाड़ों पर बहती नदी पत्थरों से टकराकर अपनी आवाज़ में एक नई धुन भर रही हो।

यह सिर्फ एक जीत नहीं, बल्कि एक एतिहासिक संदेश था। पुरानी हारों से सीखकर आगे बढ़ने का, बीते जख्मों को धोकर नए जज़्बे के साथ खड़े होने का। विराट ने निराश नहीं किया, उन्होंने वही किया जो महानतम बल्लेबाज़ करते हैं, हर परिस्थिति में खड़े रहना, अपने कंधों पर पूरी टीम की उम्मीदें ढोना, और फिर ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढाल लेना। यह वही विराट कोहली थे, जो वर्षों से हमें क्रिकेट की सबसे बेहतरीन परिभाषा पढ़ाते आ रहे हैं।

बस एक मलाल रह गया, उनके शतक का। पर जीत की खुशी इस अधूरेपन को भी पूरा कर देती है। अब बस एक और आखिरी कदम बाकी है, फाइनल में विजय का परचम लहराने का!
हिप हिप हुर्रे!

अब ट्रॉफी लेकर आइए और इस कहानी को एक स्वर्णिम अंत दीजिए।

राहुल मिश्रा
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

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