ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर स्व-नियमन की बातें तो अक्सर सुनने में आती हैं, लेकिन हकीकत में यह महज़ एक दिखावा बनकर रह गया है। दिन-ब-दिन अश्लीलता और फूहड़ता की सीमाओं को लांघता कंटेंट परोसा जा रहा है, जिससे समाज में बौद्धिक दिवालियापन और नैतिक पतन की स्थिति उत्पन्न हो रही है। स्तरहीन सामग्री, तुच्छ लोकप्रियता की दौड़, भद्देपन की पराकाष्ठा और ट्रेंड में बने रहने की अदम्य लालसा—यही आज की असल समस्या बन गई है।
इसी संदर्भ में केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने स्व-नियामक निकायों के लिए एक महत्वपूर्ण परामर्श (एडवाइजरी) जारी की है, जिसमें आयु आधारित वर्गीकरण और अश्लील व अभद्र कंटेंट पर प्रतिबंध से संबंधित नियमों के पालन की सख्त हिदायत दी गई है।
सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लीलता और अभद्रता पर सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीर आपत्ति जताई है। शीर्ष न्यायालय ने केंद्र सरकार को आदेशित किया है कि वह सोशल मीडिया क्रिएटर्स के लिए एक मर्यादित आचार संहिता तैयार करे और उनके शब्द चयन पर विशेष ध्यान दे। आज सोशल मीडिया पर लोग बिना सोचे-समझे कुछ भी कह और लिख रहे हैं, जो समाज के लिए बेहद खतरनाक और चिंताजनक संकेत हैं।
अभी एक चर्चित यूट्यूब स्टार का प्रकरण इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। एक यूट्यूब शो में की गई उनकी अवांछित टिप्पणी ने देशभर में आक्रोश की लहर पैदा कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए रणवीर को कड़ी फटकार लगाई है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है—हमारा युवा आखिर किस दिशा में बढ़ रहा है? और उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि वह ऐसी सोच विकसित कर भी कैसे पा रहा है? आज हास्य और मनोरंजन के नाम पर जो कुछ भी परोसा जा रहा है, उस पर गंभीर विमर्श की आवश्यकता है।
यह हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि इस तरह के कंटेंट को देखते ही रिपोर्ट करें। अगर यह मुहिम हम सभी ने मिलकर चलाई, तो न सिर्फ आपका परिवार और आपके मित्र, बल्कि पूरा राष्ट्र एक सकारात्मक वातावरण में सांस ले सकेगा। यह समय है एक बड़ा रीसेट, रिस्टार्ट और रिबूट करने का।
यह अश्लील और विकृत कंटेंट हमारे बच्चों के कोमल मस्तिष्क को गहराई से प्रभावित कर रहा है। जैसा हम देखेंगे और सुनेंगे, वैसा ही हमारे विचार और व्यवहार बनेंगे। इसलिए अब वक्त आ गया है कि हम सजग, सतर्क और सक्रिय बनें और इस गिरते स्तर के खिलाफ सशक्त आवाज़ उठाएं।
राहुल मिश्रा
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश