कहते है ना बाबा तुलसी को आप जितना पढ़ते जाएंगे आप उनके में लीन होते जाएंगे। लीन ऐसे हो जाएंगे की आप खुद को उस वातावरण में बिठाकर नए प्रसंग को सिर्फ साक्षात देख ही नहीं पाएंगे अपितु कलमबद्ध भी कर पाएंगे।
दृश्य है किसी ऐसे देवता के राज्याभिषेक का, जिन्हे देवता लोग भी कहते आप दैवीय है और हम पृथ्वीवासी उन्हें मर्यादा में सर्वोपरी और पुरुषों में उत्तम की उपाधि देते नहीं थकते। जिनके तनिक मुस्कान मात्र से नियत और नियति अपने पाले बदल लेती। जिनके स्नेह मात्र से सुग्रीव अपनी पूरी सेना सहित लंकेश के गढ़ पर चढ़ाई कर देते। जिनकी प्रभुता से प्रसन्न होकर महाबली बालि मृत्यु क्षण में भी अपने विरोधी को अपना श्रेष्ठ पुत्र अंगद सौपते हुए कहते हैं प्रभु के चरणों को ही अपना धर्म मानना।
उन्ही के राज्याभिषेक होने को तैयारी है। चारो ओर वातावरण बेहद सुगंधित, पुष्पित, आनंदित और अलौकिक लगता है। और हो भी क्यों न चौदह वर्ष बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटे हैं। यह चौदह वर्ष का वनवास सिर्फ प्रभु श्री राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण ने नहीं काटे अपितु तीनों माताएं, भ्राता भरत, शत्रुघ्न, सभी रानियां, गुरु देव, समेत अयोध्या का प्रत्येक नगरवासी, मां सरयू, निषादराज, मनुष्य, पशु, पक्षी सबने काटी है। जो आंखें चौदह वर्षों में कभी नहीं सूखी थी, अब उनमें आनंद लौट आया है। मानो कि चौदह वर्ष बाद अयोध्या के प्रत्येक वृक्षों पर नए पल्लव आये हैं।
भ्राता भरत किसी छोटे बच्चे की भांति यूंही प्रसन्नता में भागदौड़ कर रहे हैं ताकि प्रभु के राज्याभिषेक में कोई कमी ना रह जाए। लक्ष्मण और शत्रुघ्न समूची अयोध्या को सजा देने के संकल्प पूर्ण होते ही अब राजमहल और राजसभा को अपने सबसे कुशल कारीगर द्वारा अपनी देख रेख में सजवा रहे हैं। यह भी बिल्कुल सच है कि महाराज दशरथ की मृत्यु के बाद यह पहला अवसर है जब पूरे रघुकुल में हर्ष पसरा है।
आज माता कैकेई के हिस्से में भी जो पश्चाताप है उसको भी वे आज अपने खुशी से ढांप लेने हो आतुर हैं। माता कैकई भी मन ही मन सोच रही हैं, "आज मेरे राम का राज्याभिषेक होना ही शायद मेरे पापों को धो देगा।" चारों ओर मंगल ध्वनि, मंगल गीत, मंगल भजन की गूंज है। माता कैकेई अपने बहुओं को प्रेरित करते हुए चुटकी ले रही है, "तुम लोगों ने मिथिला में क्या सीखा है जरा ताल दो, जरा भजन गाओ, मेरे राम का आज राज्याभिषेक जो है" बहुएं भी हंसते हुए मंगल गीत गाने लगती है।
सारे नगरवासी, दरबारी जुट गए हैं। वातावरण सुन्दर सुन्दर तान से गुंजायमान हैं। दास-दासियाँ लगातार पुष्प बरसा रही हैं। सभी उपस्थित लोग बार-बार अपने भाग्य को सराहते हुए मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। उत्साहित नगरवासी बार बार यूँ ही चिल्ला उठते हैं- जय सिया राम।
संगीत के मर्मज्ञ अपनी सर्वश्रेष्ठ धुन प्रभु को सुनने को आतुर है तो गवैए अपनी सर्वश्रेष्ठ गीत सुनाने के लिए उत्साहित। माली अपनी सर्वश्रेष्ठ सजावट करके प्रभु को प्रसन्न के लिए कमर कस लिए है तो रसोइए अपना सर्वश्रेष्ठ व्यंजन से प्रभु का भोग लगाने खातिर जी जान झोंक रहे हैं। सब अपनी ओर से पुरजोर कोशिश कर रहे की प्रभु के अभिषेक में किसी प्रकार की कमी ना आए। सच कहते हैं ना पगार लेकर कार्य करने में चूक हो ही जाती है पर सर्वस्व प्रभु में न्योछावर करने की यदि मंशा हो तो प्रभु भी पीछे कहां हटते हैं।
पर प्रभु इन सबके होते हुए भी व्याकुल दिखाई दे रहे है। उनकी निगाहें शायद किसी अति विशिष्ट की तलाश में कभी दरबारियों की ओर जाती तो कभी प्रजाजनो के बीच। तमाम छोटे बड़े राजा महाराजाओं से सजे इस समागम में आखिर प्रभु किसे खोज रहे थे। प्रभु की व्याकुलता आखिर कौन समझ सकता, क्योंकि चिंता भी उनकी ही है और निवारण भी उनका। माया भी उनकी है और महिमा भी उनकी ही। फिर भी प्रभु श्री राम की चिंता है क्या?
तमाम चेहरों को निहारते हुए उनकी दृष्टि ऋषियों के बीच खड़े एक असाधारण व्यक्ति पर पड़ी। बड़ी बड़ी जटाएं, चेहरे पर जबरदस्त तेज, माथे पर त्रिपुंड, गला नीले रंग से लिपटा हुआ, गले में सर्प, मस्तक पर चंद्रमा। प्रभु उन्हे देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगे। थोड़ी ही देर में उनके चेहरे पर पूर्व जैसी मुस्कान छाने लगी।
यह महात्मा आगे बढ़ते जा रहे थे और प्रभु समीप आ रहे थे। संगीतकारों ने एक धुन छेड़ दी, उसमे अदृश्य वाद्य यंत्र डमरू की ध्वनि घुलने लगी। सिर्फ प्रभु श्री राम अपने भगवान को वास्तविक स्वरूप में देख पा रहे थे उन्होंने उन्हें प्रणाम किया महादेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया। महादेव ने अपनी वीणा के धुन पर पूरे वातावरण को राममय कर दिया। उनके वीना के तारों पर उंगलियां फेरने की गति से तमाम सगीतज्ञ अचंभित रह गए। कहते हैं ना भक्त अगर भक्ति से महादेव को बुलाए तो वह जरूर आते हैं।
हर हर महादेव।
राहुल मिश्रा
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश