मोहद्दीपुर, पैडलेगंज, छात्रसंघ चौराहा, फिराक चौराहा, बेतियाहाता चौराहा, अलहदादपुर चौराहा, पाण्डेयहाता, घंटाघर उंगलियों पर गिनते हुए सुरभि ने सौरभ से कहा "का गुगल बाबू, मी म्हटलं सगळं बरोबर?"
सौरभ ठहरा गोरखपुरियां बाबू उसको कहां समझ आती मराठी। उसने फटाफट बोला "हां पिछले 10 बरस से यही तो याद करा रहा हूं तुम्हे।"
"माइके से ससुराल का रास्ता तो याद होना चाहिए न? "सौरभ ने हंसते हुए कहा
याद है तुम्हे इन्ही गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगाते हुए पहली बार तुम्हे पाण्डेयहाता की गलियों से गुजरते एक पंडाल में देखा था। तुमने मुझे बप्पा का प्रसाद दिया था जिसकी मिठास आजतक मेरी ज़ेहन में ताजा है।
सुरभि टूटी फूटी हिंदी में बोली "इन गलियों के नाम के जाल से तुम्हारे प्रेम के जंजाल तक सब कुछ मुझे रेती के जाम सा लगता है। स्थिर लोगों के बीच एक कोलाहल भरी बाजार।"
"पर शाम की जगमगाती दूधिया रोशनी के बीच यही बाजार कितना प्यारा लगता है। वो भी खरीदारी करने वाली सुरभि हो तो क्या कहने", सौरभ ने कहा
दोनो यही बोलते हुए शाहमरूफ के किसी पसंदीदा दुकान पर पहुंच गए, जहां दोनो की आवाजें गाड़ियों की शोर से मद्धिम होती चली गई।
राहुल मिश्रा | 12 सितंबर 2024
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश