श्रद्धया इदं श्राद्धम्
जो श्रद्धा से किया जाय, वही श्राद्ध है। प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। शास्त्र कहते हैं कि भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।
एक बात मन में घर कर गई है। जो दंपति अपने पितरों को जीवित रहने पर देखने, आदर सम्मान करने, दो शब्द मीठा बोलने से कतराते रहे हो। वो भी पितृपक्ष में ब्राह्मण भोज करके विधि विधान से अपने पितरों को स्मरण करके जल चढ़ाते हैं। आजकल तो युवा दंपतियों की आदत में एकल परिवार को बढ़ावा देना शुमार है। जिस वजह से उनकी संताने आधारहीन, दूर दृष्टिहीन, व्यक्तिगतवादी और भी ना जाने कितने प्रकार के अवगुणों से युक्त हो जाती है।
मेरे घर में चार जनरेशन एक साथ है यह मेरा और मेरे पुत्र का सौभाग्य है कि उनकी दादी और पर दादी के सानिध्य में उसका बचपन बीत रहा है। दादी मां और परदादी मां बड़ी ही सहजता और सौम्यता से मजबूत जीवन जीने की कला रुद्र को धीरे धीरे सिखा रही है।
अंत में हम बस यही कहना चाहते है कि अपने पितरों को इसी धरा पर मिट्टी के शरीर में ही उनका आदर, सम्मान और सुख की अनुभूति होने दें। यकीन मानिए आजतक ऐसी कोई फूड डिलीवरी सर्विस नहीं बन पाई है, जो पर लोक में आपका खाना आपके पितरों तक पहुंचने में सक्षम हो सके।
मिश्रा राहुल
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश