लप्रेक 21: घड़ी में ज्यों ही तीन बजे संजय नें रास्ता निहारना शुरू कर दिया।

घड़ी में ज्यों ही तीन बजे संजय नें रास्ता निहारना शुरू कर दिया। शाहमरूफ़ में आज बारिश कुछ ज्यादा ही हो रही थी। संजय की छप्पर से भी बूंदे टप-टप करके गिर रही थीं।
लप्रेक 21:
घड़ी में ज्यों ही तीन बजे संजय नें रास्ता निहारना शुरू कर दिया। शाहमरूफ़ में आज बारिश कुछ ज्यादा ही हो रही थी। संजय की छप्पर से भी बूंदे टप-टप करके गिर रही थीं।
संजय किसी को देखने के चक्कर में ग्राहकों पर ध्यान ही नहीं दे पा रहा है। वह बस रुवांसा मुँह बनाने वाला ही था कि ठेले पर लगे बताशों के ढ़ेर के पीछे से आकर एक बाला नें हाथ बढ़ाया।
क्लचर* खोलकर उसने बालों को ऐसा झटका मारा जैसे मानो रजनीगंधा की खुशबू के पूरे चारो फ्लेवर** मिलकर एक ही बना दिया हो।
पहले पुदीना फिर सौंफ फिर हींग। संजय नें किसी पहाड़े की तरह सब कुछ बड़े सलीके से याद कर रखा था। हर दो पुदीने के बताशों के बीच एक मीठा मज़ा। काफी पुरानी यारी सी लगती।
प्यार तो प्यार है एक अधिक बताशे या दों के बीच एक मीठा खिलाने से भी हो जाता।
* Cluture
** Flavour
राहुल मिश्रा
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
10-जनवरी-2024
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