त्रेतायुग में हंपी से करीब 25 किमी दूर स्थित अनेगुंडी गांव ही तात्कालिक किष्किंधा नगरी थी। वानरों और रीछों के साथ ही वैनर जाति के लोग उधर छोटे छोटे झुंडों मे रहा करते थे। वैनर जाति के लोग खासतौर पर डरपोक होने की वजह से गाँव के बाहर ही अपना आशियाना बनाते थे। एक बार वानर जाति, रीछ जाति नें मिलकर यह फैसला लिया कि इन प्रजाति के लोगों का समूल विनाश कर दिया जाए।
रथ सज गए, घोड़े तैयार थे, मयान से चमचमाती तलवार निकल गयी। छोटा सा युद्ध हुआ और वैनर जाति का अस्तित्व ही समाप्त होने को था कि इसी बीच एक आकाशवाणी हुई "एक छोटा बच्चा जो सुदूर तुंगभद्र नदी के उत्तरी तट अवतरित हुआ है, यही वैनर जाति के लोगों को आगे बढ़ाएगा। साथ ही यह बालक कठोर तप करके परमपिता ब्रह्मा को खुश करेगा और वरदान प्राप्त करेगा। आगे चलकर उसका यह वरदान कलियुग में काम आएगा"
किष्किंधा नगरी में राजा बलिक, राजा सुघ्री तथा अनुज अंगर के प्रचार प्रसार संबंधी सभी दस्तावेजों को, उसने पहले रात के अँधेरों में फाड़ना शुरू किया और इस कार्य में सफलता प्राप्त की। धीरे धीरे उसनें अपने इस कार्य को दिन के उजाले में करना शुरू किया। एक बार रीछों के सरदार जंबूवंत नें उसे रंगेहाथो पकड़ लिया। अगले दिन उसे राजा बलिक के समक्ष पेश किया गया। राजा बलिक को बड़ा गुस्सा आया और उन्होने इसे करगार में डाल दिया। रोज प्रचार सामाग्री न नोच पाने से उसकी दयनीय स्थिति हो गयी और वो कमजोर होने लगा। एक दिन घनी रात में एक बार फिर आकाशवाणी हुई "हे बालक!! तुम्हारा जन्म वैनर जाति को आगे ले जाने के लिए हुआ है तुम्हें कठोर तप करना होगा"
वैनर जाति के उस बालक नें घनघोर तप किया। साथ ही परमपिता ब्रह्मा को प्रसन्न किया। ब्रम्हा जी नें उसे मनवांछित वर मांगने को कहा। बालक ने कहाँ मुझे ऐसा वर दीजिये प्रभु कि "मैं किसी की प्रचार सामाग्री देखू तो वो खुद ब खुद जल जाये, किसी भी व्यक्ति का उत्तम आइडिया मैं अपने आप ही चुरा लूँ, और किसी नें कोई सुंदर रचना की हो या चित्रकारी की हो तो मैं उसे स्वतः ही मैं चुरा लूँ।"
ब्रम्हा देव प्रसन्न हुए और कहे तथास्तु वैनरासुर।
तब से वैनरासुर इसी नाम से पूजा जाने लगा और कलयुग में इसका प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। यह वैनरासुर को प्रचार सामाग्री से अजीब सी चिढ़ है जिसे देखते ही उसे उसको जला देने का वरदान है। वैनरासुर आजकल पूरी दुनिया में विचरण करता हुआ राप्ती के पश्चमी तट पर अपना आशियाना बनाया है।
ईश्वर रक्षा करें वैनरासुर से।
राहुल मिश्रा
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश