उम्मीदों
के गुल्लक में,
रोज़ भरता हूं
सितारों की ख्वाहिशें।
दिन के महीने,
महीनों के साल हुए,
सितारें मुंह फुलाए
लड़ रहे चांद के लिए।
कल रात
चुपके से चुराकर,
चांद की चवन्नी
डाल दूंगा।
फिर
एक साथ
फोड़ेंगे गुल्लक,
और बाटेंगे
अपने अपने हिस्सों
के किस्मती सितारे।
- राहुल मिश्रा
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
26 दिसंबर 2022