मां और ममता

मां और ममता दोनो समान अक्षरों से बने शब्द हैं। या यूं कहे मां और पुत्र किसी ऐसे उपरिगामी पुल की तरह हैं। जहां मां कंटीली, धूलधूसरित भूमि में अपने त्याग, तपस्या और तेज के मजबूत स्तंभों पर पुत्र रूपी पुल को चलायमान करती है। पुत्र उसी पुल पर अपने संबंधों के लिए सहज रास्ते तैयार करता जाता है।

मां और ममता दोनो समान अक्षरों से बने शब्द हैं। या यूं कहे मां और पुत्र किसी ऐसे उपरिगामी पुल की तरह हैं। जहां मां कंटीली, धूलधूसरित भूमि में अपने त्याग, तपस्या और तेज के मजबूत स्तंभों पर पुत्र रूपी पुल को चलायमान करती है। पुत्र उसी पुल पर अपने संबंधों के लिए सहज रास्ते तैयार करता जाता है। पुत्र अपने संबंधियों को धीरे धीरे उसी उपरिगामी पुल से होकर किनारों तक पहुंचाते जाता हैं। कभी कभी ऐसी अवस्था भी आती है कि स्तंभों को सराहे जाने, उनके रखरखाव की आवश्यकता पड़ती है। परंतु पुत्र अपने सहज रास्ते से दौड़ता हुआ सदैव उपरिगामी पुल से ही यात्रा करते रहता है।



उसका यह रवैया अब उसकी आदतों में सुमार हो गया है, अब शायद वह भूल भी गया है की उसके पुल के नीचे से भी कभी एक मार्ग हुआ करता था। जहां उसके उड़ान, चकाचौध से पहले भी एक दुनिया थी। वही दुनिया जहां यह बड़े बड़े झंझावत नहीं थे, जहां उसकी मां के जरा सा पुचकार देने से भी बड़ी से बड़ी समस्या सहजता से किसी जादूगर की तरह हल हो जाती थी।



फिर एक रोज बड़ा अजीब हुआ, बहुत दुखद, बहुत कष्टकारी सूचना मिली कि वह उपरिगामी पुल देखरेख की अभाव में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। लोग उस क्षतिग्रस्त पुल की ओर से गुजर रहे थे। कोई उसकी तस्वीर खींच रहा था, तो कोई अखबार वाला उसकी रिपोर्ट तैयार कर रहा था। कोई सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहा था। सभी अपनी अपनी खानापूर्ति, या यूं कहे रोजमर्रा का काम कर रहे थे।



पर वह पुत्र दुखित था। बहुत दुखित। अकेला नितांत अकेला। शायद इसलिए कि अब उन्ही कंटीली और धूलधूसरित भूमि के रास्ते होकर जाना होगा। या फिर शायद इसलिए भी कि उसका प्यारा जादूगर कहीं खो गया है, जो पल भर में उसके लिए ऐसे न जाने कितनी कंटीली और धूलधूसरित भूमि पर असंख्य उपरिगामी पुल बनाता चला गया था।



या यूं कहे कि अब उसके लिए कोई सहूलियत नहीं है। या यूं कहे कि अब कोई उसकी बात सुनने समझने वाला कोई भी नहीं है



राहुल मिश्रा

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

30-जनवरी-2024

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