एक
जैसी लगती
तेरी चित्रकारी
और मेरी
कलमकारी।
लिखता
हूं तो एहसास
कैनवास हो जाता।
अल्फ़ाज़
मेरी कूंची बन जाती।
क्यूँ ना
कभी ऐसा हो,
तेरी स्केचिंग
के कैनवास पर,
मैं शब्दों के
गौहर सजा दूं।
और तू मेरी
ग़ज़ल पर
अपने रंगो का
टीका कर दे।
- राहुल मिश्रा
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
06 जनवरी 2016